Rashtriya Swayamsevak Sangh Ki Sahka राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संघ की शाखा। संघ की शाखा क्यों आवश्यक है।

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शाखा

संघ की शाखा क्या है इसके क्या फायदे है ये कैसे लगाई जाती है इसकी आज्ञा कितनी होती है और कितने प्रकार की शाखा होती है सबसे पहले हम जान लेते है की परम पूजनीय श्री गुरु जी ने शाखा को किस प्रकार से परिभाषित किया है

शाखा : संगठित जीवन के लिये आत्मीयतापूर्ण सम्बन्ध और अनुशासनबद्ध रूप में। कार्य करने की सिद्धता, दोनों आवश्यक हैं। इसीलिये हम लोगों ने प्रतिदिन, निश्चित स्थान तथा निश्चित समय पर एकत्रित होकर, भिन्न-भिन्न प्रकार से कार्यक्रमों के माध्यम से इन गुणों को प्राप्त करने का संकल्प किया है। किसी एक स्थान पर एकत्र आना, पवित्र ध्वज को प्रणाम करना, उसकी छत्रछाया में अनुशासन और आत्मीयता बढ़े ऐसे कार्यक्रमों का अभ्यास करना, फिर अपने ध्येय का स्मरण करने के लिये अपनी पवित्र प्रार्थना बोलना, ध्वज को प्रणाम कर, ध्वज को उस दिन के लिये विसर्जित कर अपने-अपने दैनिक जीवन के कार्यों को ध्येयानुरूप समर्पण भाव से करते रहने की प्रेरणा लेकर घर वापस जाना, अपने कार्य का स्वरूप है। इस प्रकार संगठित जीवन निर्माण करने के लिये हमने बड़ी सरल पद्धति सामने रखी। है। इसे ही हम अपनी शाखा कहते हैं। : श्री गुरु जी

राष्ट्रीय सेवक संघ की शाखा की विस्तार में जानकरी

               शाखा की समय सारिणी

स्वयंसेवक निर्माण की दृष्टि से शाखा पर सभी प्रकार के शारीरिक व बौद्धिक कार्यक्रमों की उपयोगिता है। दैनिक शाखा का समय केवल एक घण्टा होने के कारण सभी कार्यक्रम नित्य नहीं हो सकते। अतः शाखा की दैनिक, साप्ताहिक समयसारिणी का विचार आवश्यक तदर्थ, अपनी शाखा टोली के कार्यकर्ताओं के साथ विचार-विमर्श कर योजना बनाना अपेक्षित। इसके लिए निम्न बातों का ध्यान रखें

(क) नित्य अनिवार्य कार्यक्रम :-

(1) समंत्र तेरह सूर्यनमस्कार (2) 25 दण्ड प्रहार (3) समता-संचलन (4) गीत (5) अमृतवचन / सुभाषित (15-15 दिन प्रत्येक) अपेक्षा है कि 15 दिन में अमृतवचन / सुभाषित तथा एक माह में एक गीत कंठस्थ हो, 5-6 दिन तो सांघिक भी बोला जा सके।

(ख) वैकल्पिक कार्यक्रम

स्वयंसेवकों की आयु, अभ्यास आदि में भिन्नता के कारण सभी शाखाओं / गणों में सभी शारीरिक कार्यक्रम नहीं हो सकते, अतः निम्न में से अपनी शाखा स्थिति के अनुसार किसी एक कार्यक्रम का 3-4 मास तक सप्ताह में 2-3 दिन अभ्यास किया जाए-

  • प्रौढ़ों के लिए – योगासन, संधि व्यायाम, आवर्तन ध्यान,प्राणायाम, दण्ड के प्राथमिक प्रयोग आदि ।
  • तरुणों के लिए -पदविन्यास, दण्ड (शरीर तथा शस्त्र संचालन में समन्वय हेतु); दण्ड युद्ध, नियुद्ध (साहस, संघर्ष – सन्नद्धता हेतु)
  • बालको के लिए – पदविन्यास, योगचाप, योगासन, दण्ड
  • शिशुओं के लिए : योगासन, विभिन्न साधनों से युक्त योग ( पताका रुमाल, चप्पल, पत्थर आदि)

(ग) समान कार्यक्रम

( व्यायाम योग) सप्ताह में एक-दो बार सभी शाखाओं पर एक समान व्यायाम योग कराना। वर्ष के तीन खण्डों के अलग-अलग इकाई पर समान योग निश्चित किए जाते हैं।

  1. आखल भारतीय स्तर पर
  2. प्रान्तीय स्तर पर
  3. विभाग / जिला स्तर पर ।

(घ) खेल

विजीगीषु भाव जगाने के लिए सभी प्रकार की शाखाओं पर आवश्यक। सामान्यतः शिशुओं, बालों को दौड़-भाग तथा उछलकूद वाले; तरुणों को संघर्ष तथा प्रौढ़ों को कम शारीरिक हलचल वाले खेल कराना। कबड्डी, खो-खो या आट्या-पाट्या सप्ताह में दो बार 15-20 मिनट खिलाना अपेक्षित।

(ङ) बौद्धिक कार्यक्रम

कथा-कहानी, चर्चा, समाचार – समीक्षा, बौद्धिक वर्ग, प्रश्नोत्तरी, आदि कार्यक्रमों के लिए सामान्यतः सप्ताह में दो दिन 20-25 मिनट का समय निकालें ।

उपरोक्त बातों का ध्यान रख कर विचारार्थ एक घंटे की शाखा का समय का विभाजन निम्न प्रकार किया गया है

शाखा लगाना एवं उष्ण व्यायाम 5 मिनट
अनिवार्य शारीरिक कार्यक्र्म (सूर्य नमस्कार ,प्रहार ,समता ) 15 मिनट
खेल 15 मिनट
वेकल्पिक शारीरिक कार्यक्र्म /व्यायाम योग 10 मिनट
सप्ताह मे चार से पाँच दिन बोद्धिक कार्यक्र्म /सुभाषित / अमरत वचन , गीत 10 मिनट
प्रार्थना 5 मिनट
सम्पूर्ण शाखा (सुबह मे ) 60 मिनट
नोट यह सुबह की शाखा की टाइम टेबल है शाम की शाखा मे खेल का सामी बढ़ जाता है इसलिए उसका सामी 1 घंटा 30 मिनट हो जाता है

बातचीत के कालांश में एक दिन धर्मग्रंथ-वेद, पुराण, उपनिषद्, गीता, महाभारत, रामायण / रामचरितमानस, आगम, पिटक, श्री गुरुग्रंथ आदि में से कुछ प्रसंगों की चर्चा / वार्ता / प्रवचन; एक दिन संघ विचार’ के संबंध में अथवा स्वयंसेवकों द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न संगठनों के बारे में चर्चा तथा एक दिन अपनी बौद्धिक पुस्तिका से अन्य विषय, स्मरणीय दिवसों पर महापुरुषों के जीवन प्रसंग / कथा कथन आदि हों। रविवार की रचना स्वयोजना से करें- समाचार समीक्षा, बौद्धिक वर्ग आदि भी ले सकते हैं।

इस निमित्त प्रत्येक प्रकार के लिए एक स्वयंसेवक निश्चित करें। स्वयंसेवकों में से ही कुछ अध्ययनशील बंधु भी विषय रख सकते हैं, क्षेत्र के अन्य तज्ञ व्यक्तियों को भी विषय-प्रतिपादन हेतु आमंत्रित कर सकते हैं। नित्य प्रति गीत अवश्य हो ।

अपेक्षा है कि शाखा टोली के कार्यकर्ता अपनी शाखा की समय सारिणी स्थानीय परस्थिति अनुसार स्वयं तैयार करें तथा अनुभव के आधार पर उसमें आवश्यक संशोधन भी करते रहें। लेकिन टोली द्वारा बनाई गई योजनानुसार ही कार्यक्रम कराना अपेक्षित हे

साप्ताहिक सेवा दिन

स्वयंसेवक के जीवन में सेवाभाव जगाने के लिए शाखा की रचना में एक दिन की योजना ‘साप्ताहिक सेवा दिन’ के रूप में की गई है। मास के चार दिनों में इस दिन की रचना का प्रकार निम्नानुसार किया जाए-

  1. एक दिन किसी महापुरुष / संत के जीवन में से सेवाभाव जगाने वाले कोई प्रेरक प्रसंग सुनाना
  2. एक दिन समाज में चल रहे अच्छे सेवा कार्यों में से किसी का वर्णन करना ।
  3. सेवा कार्य करने वाले अपने कार्यकर्ता या समाज बंधु-भगिनियों में से किसी के द्वारा प्रत्यक्ष अनुभव कथन ।
  4. स्वयंसेवकों के प्रत्यक्ष सेवा कार्य का अनुभव हो इस दृष्टि से-
    • (क) संघस्थान पर ही कुछ श्रमानुभव
    • (ख) बस्ती में अथवा किसी धर्म-स्थान पर कोई श्रमकार्य
    • (ग) सेवा बस्ती दर्शन, ताकि उन बस्तियों में रहने वाले समाज की परिस्थितयों व कठिनाइयों का ज्ञान हो सके।
    • (घ) इसके अतिरिक्त भी अन्य अनेक प्रयोग अपनी प्रतिभा, कल्पकता तथा स्थानीय परिस्थिति की उपलब्धता के आधार पर किये जा सकते हैं। जैसे- किसी अंध विद्यालय में ले जाकर स्वयंसेवकों को अनुभूतिकराना, चिकित्सालय में मरीजों को देखना- उनकी कुछ सहायता करना आदि।

नैमित्तिक कार्यक्रम

वर्तमान काल में स्वयंसेवक निर्माण के लिए शाखा एक यशस्वी तंत्र है। शाखा पर होने वाले विविध प्रकार के कार्यक्रम. ही इस निर्माण का माध्यम हैं। लेकिन दैनिक शाखा के अतिरिक्त भी हम कभी-कभी कुछ विशेष कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इनका उद्देश्य स्वयंसेवकों में विद्यमान अनेक अन्य प्रतिभाओं को पहचानना, उन्हें विकसित करना होता है। इस प्रकार गुण विशेष के निर्माण या किसी निमित्त विशेष को ध्यान में रखकर आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रम नैमित्तिक कार्यक्रम कहलाते हैं। संघ की कार्यपद्धति में इनका विशेष महत्त्व है।

उदाहरणार्थ सामूहिक जीवन के अभ्यास के लिए शिविर; सहभोज – चंदन से परस्पर आत्मीयता, परिवार भाव तथा समरसता का वायुमंडल, नैपुण्यवर्ग तथा शिक्षा वर्गों से कार्य का सम्यक् प्रशिक्षण, पथसंचलन से उत्साह, अनुशासन व समाज में शक्ति का दर्शन, वार्षिकोत्सव से छोटी-बड़ी व्यवस्थाएँ करना व योजकता; ट्रिप व वनविहार आदि से कष्टपूर्ण जीवन में भी हिम्मत, मस्ती का स्वभाव, साहसी मनोवृत्ति आदि । इस प्रकार के नैमित्तिक कार्यक्रम जहाँ प्रान्त विभाग – जिला नगर मंडल के स्तर पर आयोजित किए जाते हैं, वहीं यह भी अपेक्षा है कि शाखा के स्तर पर शाखा टोली के कार्यकर्ताओं की सोच, प्रतिभा के आधार भी आयोजित किये जाएँ। –

शाखा के स्तर पर सहभोज, चन्दन, कभी किसी विषय पर जानकारी देने हेतु स्वयंसेवकों की विशेष बैठक, शाखा वार्षिकोत्सव, स्वयंसेवकों के परिवारजनों का मिलन, स्थलदर्शन (संघ-कार्यालय, कोई मंदिर, संग्रहालय-प्रदर्शनी आदि) का कार्यक्रम, नेत्रदान संकल्प, रक्तदान शिविर, वृक्षारोपण, बस्ती अथवा बस्ती के धार्मिक स्थल का स्वच्छता अभियान, साक्षरता, सामाजिक जागृति के अनेक विषय आदि ।

अपेक्षा है शाखा के द्वारा वर्ष भर में कम से कम 3-4 बार तो स्वयं की योजना से उपरोक्त प्रकार के या स्वयं की प्रतिभा से और भी कोई कार्यक्रम किए जाने चाहियें।

                        बौद्धिक योजना

क) कण्ठस्थ विभाग

1) गीत कंठस्थ होना चाहिए । शाखा में गीत नित्य हो, प्रयत्न रहे कि मास के अंतिम सप्ताह में तो गीत सांघिक हो । स्वयंसेवकों को गीत का अर्थ बताना । बौद्धिक वर्ग से पूर्व का काव्य गीत कण्ठस्थ करके गाना ।गीत याद करने की प्रवृत्ति तथा रुचि बढ़ाने के लिए अन्त्याक्षरी कराना। (सुरुचि द्वारा प्रकाशित ‘आओ खेलें अन्त्याक्षरी’ जैसी पुस्तकें उपयोगी)

2) प्रार्थना :-सभी स्वयंसेवकों को प्रार्थना कण्ठस्थ होनी चाहिए। प्रार्थना का अर्थ बताना। उच्चारण शुद्ध कराना । प्रार्थना कहलाने वाले स्वयंसेवकों का एक संच खड़ा करना चाहिए।

3) सुभाषित :-सुदीर्घ अनुभव तथा चिन्तन को सूक्ष्म रूप से संस्कृत अथवा अपनी भाषा में पद्य में व्यक्त करना सु-भाषित कहलता है।

4) अमृतवचन :- अमृतवचन (अमरवाणी) जो महापुरुष अमर हो चुके ऐसे अमृतों (अमर) की वाणी । चिरन्तन शाश्वत विचार अर्थात् अमर-वचन ।

5) एकात्मता – स्तोत्र

6) एकात्मता मंत्र

7) भोजन मंत्र

(ख) पारस्परिक विभाग

  • प्रश्नोत्तरी सकता है। :- किसी एक अथवा विविध विषयों पर यह कार्यक्रम हो
  • चर्चा :- सभी स्वयंसेवक इस कार्यक्रम में भाग लें।
  • प्रश्न मंच :- एक अथवा अनेक विषयों पर अनेक प्रश्न तैयार करके स्पर्धा करना। (विद्याभारती द्वारा प्रकाशित ‘संस्कृति ज्ञान परीक्षा तथा सुरुचि द्वारा प्रकाशित “भारत परिचय प्रश्न मंच जैसी पुस्तिकाएँ उपयोगी)

(ग) एक पक्षीय विभाग

एक पक्षीय विषयों में प्रवचन कथाएँ एवं बौद्धिक वर्ग आदि। इन विषयों की पूर्व तैयारी करनी चाहिये। सन्दर्भ ग्रन्थालय संघ कार्यालय में एवं व्यक्तिगत भी हो सकता है।

(घ) समाचार समीक्षा

मास में एक दिन शाखा में यह विषय लें। सम-सामयिक घटनाओं उनकी पृष्ठभूमि एवं सामाजिक-राजनैतिक राष्ट्रीय प्रभाव के बारे में जानकारी व विश्लेषण । इस कार्यक्रम को शाखा पर ठीक प्रकार से लेने के लिए शाखा के किसी स्वयंसेवक को इस हेतु नियत करना उपयोगी। वह स्वयंसेवक समाचार पत्र-पत्रिकाओं को पढ़े तथा उपयुक्त समाचार लेख आदि जिनसे स्वयंसेवकों में राष्ट्रबोध, सामाजिकता, हिन्दुत्व के प्रति गौरव, हिन्दुत्व के समक्ष चुनौतियाँ आदि विषयों की स्पष्टता हेतु प्रमुख मुद्दों का संकलन करे। सामान्यतः सम्पादकीय, लेखों तथा पत्रिकाओं में से समाचारों की पृष्ठभूमि प्राप्त होती है। इस दृष्टि से पांचजन्य, आर्गेनाइजर, जागरण पत्रिकाएँ विशेष उपयोगी हैं। समय-समय पर यह स्वयंसेवकों अथवा प्रवासी कार्यकर्ता स्वयंसेवकों के समक्ष समाचारों की समीक्षा प्रस्तुत कर सकते हैं, जिसका स्वाभाविक परिणाम अपेक्षित है कि स्वयंसेवकों को समाचार पढ़ने की दृष्टि मिले।

(ङ) श्रेणी बैठकें

विद्यार्थियों में कक्षा-समूहों के अनुसार तथा व्यवसायी बंधुओं में व्यवसाय अथवा व्यवसाय समूहों के अनुसार शाखा समय के अतिरिक्त समय में बैठकें रखना। इन बैठकों में विषय प्रतिपादन के साथ-साथ प्रश्नोत्तर भी रखे जा सकते हैं। स्वयंसेवकों के साथ ही उनके मित्रों को भी आमन्त्रित किया जा सकता है। इस प्रकार इन बैठकों का उपयोग जन प्रबोधन के साथ ही नई भरती के लिए भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

क्रियान्वयन की दृष्टि से :-

अपेक्षा है कि गीत तथा अमृतवचन अथवा सुभाषित शाखा पर नित्य कराए जाएँ (अनिवार्य कार्यक्रम)। इनके अतिरिक्त कंठस्थ विभाग के अन्य कार्यक्रमों का अभ्यास एवं कथा-कहानी का क्रियान्वयन मुख्यतः शाखा टोली के कार्यकर्ता करें।

शेष कार्यक्रमों को लेने में ज्यादा अनुभव की आवश्यकता होती है, अतः प्रवासी कार्यकर्ताओं के द्वारा कराए जा सकते हैं। किस कार्यकर्ता के प्रवास के समय कौन सा विषय लिया जा सकता है। तथा शाखा पर मास भर में क्या-क्या कार्यक्रम लिए जाएँ,इस दृष्टि से प्राप्त होने वाली बौद्धिक पुस्तिका (पत्रक) का उपयोग करते हुए शाखा कार्यकर्ता साप्ताहिक-पाक्षिक- मासिक योजना निर्धारित करें।

बोद्धिक योजना के बाद आती है शारीरिक योजना योजना शाखा लगाने के लिए बोद्धिक योजना ओर शारीरिक योजना को जानना बहुत ही जरूरी है यदि आपको इन दोनों का ही ज्ञान नहीं है तो आप शाखा लगाने मे आदर्श नहीं होंगे अब जानते है है शारीरिक योजना क्या होती है

शारीरिक योजना

संघ की शाखा खेल खेलने अथवा कवायद (परेड) करने का स्थान मात्र नहीं है, अपितु सज्जनों की सुरक्षा का बिन बोले अभिवचन है, तरुणों को अनिष्ट व्यसनों से मुक्त रखने वाली संस्कार पीठ है, समाज पर अकस्मात् आने वाली विपत्तियों अथवा संकटों में त्वरित, निरपेक्ष सहायता मिलने का आशा केन्द्र है, महिलाओं की निर्भयता एवं सभ्य आचरण का आश्वासन है, दुष्ट तथा देशद्रोही शक्तियों पर अपनी धाक स्थापित करने वाली शक्ति है और सबसे प्रमुख बात यह है कि समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सुयोग्य कार्यकर्ता उपलब्ध कराने हेतु योग्य प्रशिक्षण देने वाला विद्यापीठ है। –माननीय बालासाहेब देवरस

आचार विभाग

शाखा प्रारम्भ- मुख्य शिक्षक द्वारा सीटी (00) बजाते ही स्वयंसेवक आपस की बातचीत बंद कर सम्पत स्थान के पीछे की ओर ध्वजस्थानाभिमुख होकर आरम् में खड़े रहेंगे।

सम्पत् की पद्धति

मुख्यशिक्षक

  1. संघ दक्ष
  2. आरम् देकर अग्रेसर बुलाएगा। अग्रेसरों की सम्पत् रेखा ध्वज केन्द्र से ध्वजदंड की लम्बाई से कम अंतर पर नहीं होनी चाहिये। (दैनिक) शाखा पर साधारणतः 6 कदम संघस्थान छोटा होने की स्थिति में न्यूनतम 4 कदम)
  3. अग्रेसर – सब अग्रसर दक्ष करेंगे और प्रचलन करते हुए नियोजित स्थान पर निश्चित क्रमानुसार (सम्पत का क्रम- दाहिनी ओर से पहले अभ्यागत, उनकी बाँयी ओर क्रमशः तरुण, बाल और शिशु) दक्ष में खड़े होंगे। साधारणतः सम्पत् रेखा के मध्य से स्वयंसेवकों की ओर मुँह करके वामवृत कर अग्रेसरों की संख्या से एक कदम कम अंतर (चार अग्रेसर हैं तो तीन कदम) जाकर स्तम् कर पहला अग्रेसर खड़ा करना, पश्चात दो-दो कदम (150 से.मी. अंतर) बाँयी ओर आते हुए अग्रेसरों को खड़े करने से सम्पत् रचना ठीक रहती है। मुख्य शिक्षक उनका अन्तर और सम्यक देखकर आरम् कहेगा। दो अग्रेसर के बीच दो कदमों का अन्तर (150 सें.मी.) होगा।
  4. अग्रेसर सम्यक
  5. अग्रेसर आरम्
  6. संघ सम्पत– अग्रेसरों सहित सभी स्वयंसेवक दक्ष करेंगे। स्वयंसेवक प्रचलन करते हुए अपने-अपने अग्रेसर के पीछे गणशः हस्तांतर लेकर खड़े रहेंगे और अग्रेसर के आरम् करने पर क्रमशः आरम् करेंगे। गण के अंत में गणशिक्षक रहेगा। सम्पत् करते समय प्रत्येक स्वयंसेवक अपना दाहिना हाथ (मुट्ठी खोलकर) आगे वाले स्वयंसेवक को स्पर्श करे। इसके कारण सभी का अंतर भी समान रहेगा तथा सबसे पीछे वाले स्वयंसेवक को कोई स्पर्श नहीं करेगा, अतः उसे ध्यान रहेगा कि संख्या की आज्ञा पर उसे संख्या देनी हैं। मुख्य शिक्षक तथा उपस्थित सर्वोच्च अधिकारी क्रमशः वामतम तथा दक्षिणतम प्रतति के बाजू में 3 कदम अंतर पर तथा ध्वज और अग्रेसरों की पंक्ति की मध्य रेखा पर एक दूसरे की ओर मुँह कर खड़े होंगे। ध्वज लगाने वाला स्वयंसेवक इसी समय मुख्य शिक्षक के पास उसकी दाहिनी ओर तह किया हुआ ध्वज बाँए हाथ में लेकर खड़ा रहेगा। उसके पास उस समय दंड नहीं रहेगा, क्योंकि ध्वजारोहण, ध्वजप्रणाम और संख्या के पश्चात् आरम् यह आज्ञा होने पर संख्या गणक के नाते भी उसी को कार्य करना है। प्रतिदिन के शाखा के ध्वज की लंबरूप ऊँचाई 75 सेमी चाहिये, ध्वजदंड की ऊंचाई (2.5 मीटर चाहिये।
  7. संघ दक्ष
  8. संघ सम्यक् आज्ञा होते ही सब अग्रेसर अर्धवृत् कर अपने अपने गणों का अथवा गटों का सम्यक् देखेंगे सम्यक् देखते समय हाथ न हिलाते हुए यथावश्यक मौखिक सूचनाएँ दी जानी चाहिये। सम्यक् देखने के लिये जब अग्रेसर अर्धवृत्त करता है तो वह पंक्ति से थोड़ा दाँई ओर हट जाता है। अतः उसे पंक्ति को अपने सामने लाने हुए अपनी नाक की सीध में सभी का दायाँ कान है- यह देखना चाहिये। अन्यथा पुनः अर्धवृत्त करने पर वह पंक्ति में बाहर बाँई ओर हट जायेगा।।
  9. अग्रेसर अर्धवृत– सब अग्रेसर अर्धवृत्त करेंगे।
  10. संघ आरम् – स्वयंसेवकों को ध्वजारोपण के लिये प्रस्तुत करने की दृष्टि से दक्ष करने के उनसे एक बार आरम् (इसके पूर्व की आज्ञा अग्रेसरों के लिये होने के कारण और अब आरम सभी को करना है अतः इस समय संघ आरम् की आज्ञा देना आवश्यक है) कराना आवश्यक है।
  11. संघ दक्ष सब स्वयंसेवकों के दक्ष स्थिति में आने पर ध्वज लगाने वाला स्वयंसेवक प्रचलन करते हुए लघुतम मार्ग से ध्वजमंडल के अंदर ध्वजस्थान के सम्मुख पर्याप्त निकट जाकर स्तभ करेगा। ध्वजारोपण के हेतु उसी स्थान से ध्वजदंड उठाकर उसे अपनी बाँयी बगल के आधार पर तिरछा (सम्पत् रेखा की ओर लंबवत्) स्थिर रखकर दोनों हाथों का उपयोग करते हुए उस पर ध्वज चढ़ाएगा। पश्चात् ध्वजदंड का निम्न छोर ध्वजस्थान की बैठक में फँसाएगा। पश्चात् ध्वजमंडल के बाहर आकर ध्वजप्रणाम कर एक कदम पीछे जायेगा और प्रचलन करते हुए लघुतम मार्ग से दक्षिणतम अग्रेसर के दाहिनी ओर दो कदम अन्तर पर पहुँचकर अर्धवृत कर खड़ा होगा।
  12. ध्वजप्रणाम 1-2-3 एक, दो, तीन आज्ञाएँ हैं। अंकताल नहीं, यह जानकर आज्ञा के पश्चात क्रिया होनी चाहिये।
  13. संख्या– प्रतति में खड़ा हुआ अंत का स्वयंसेवक दाँया पैर 60 सेमी. दाँयी ओर लेकर बाँया पैर मिलाए और संख्या गिनता हुआ (प्रचल करते हुए) अग्रेसर के बाजू में स्तभ करेगा और उसे पंक्ति की संख्या बतलाकर (सामने देखकर अग्रेसर को सुनाई दे इतनी आवाज में) खड़ा रहेगा।
  14. आरम् – आज्ञा होते ही उपरोक्त स्वयंसेवक अर्धवृत्त कर प्रचलन करते हुए गण।

अथवा गट के अंत तक जाकर स्तभ और अर्धवृत्त कर 60 सेमी बाँयी ओर हट कर अपने स्थान पर सम्यक् देखकर आरम् कर खड़ा होगा। उपर्युक्त आज्ञा होने पर संख्या-गणक एक कदम (75 से.मी) आगे आकर वामवृत्त कर अग्रेसरों से क्रमशः (द्विपद पुरस करते हुए) संख्या ज्ञात कर अंतिम अग्रेसर से एक कदम आगे जाकर तथा वामवृत कर प्राप्त संख्या के योग में अपनी संख्या जोड़कर मुख्यशिक्षक को बतायेगा और अपनी बाँया पैर बाँयी ओर 160 सेमी रखकर दाहिना पैर मिलाए तथा दो कदम आगे जाकर, अर्धवृत्त कर मुख्य शिक्षक के बाजू में आरम् करके खड़ा होगा।

  1. संघ दक्ष-
  2. आरम् देकर मुख्यशिक्षक उपस्थित प्रमुख अधिकारी को संख्या गणक द्वारा – प्राप्त संख्या में स्वयं की अधिकारी की तथा सम्पत् रचना के बाहर के स्वयंसेवकों की संख्या जोड़कर बतायेगा। दक्ष द्वारा सम्मानित अधिकारी यदि उस समय संघ स्थान पर हों तो मुख्यशिक्षक ने स्वयंसेवकों को संघ दक्ष देकर (क्र. 15 के पश्चात्) संख्या बताने के लिये जाना चाहिये। संख्या बताने के पश्चात् मुख्यशिक्षक एक कदम पीछे आकर स्वयंसेवकों की दिशा में घूमकर (पूर्ण रचना दृष्टिक्षेप में आवे उतना आवश्यक वर्तन) आरम् देकर अपने स्थान पर आवेगा। तदुपरान्त
  3. संघ दक्ष
  4. स्वस्थान तब स्वयंसेवक अपने-अपने गणस्थान पर जाकर गणशिक्षक की आज्ञानुसार सम्पत् करेंगे। जहाँ स्वयंसेवक गणानुसार खड़े हैं वहाँ स्वस्थान के पश्चात् गणशिक्षक ही अपने गणों को ले जायेंगे।सामने अधिकारी उपस्थित न होने की स्थिति में (15) संघ दक्ष के पश्चात् सीधे स्वस्थान देना। (यदि स्वयंसेवकों को स्वस्थान के बाद भी उसी रचना में रोकना हो तो स्वस्थान के बाद आरम की आज्ञा देनी चाहिये। ऐसा होने पर शिक्षक गणों को नहीं ले जायेंगे। सूचना या सामूहिक कार्यक्रम के पश्चात् गणों को ले जाने के लिये सूचना मात्र देनी चाहिये।

विलम्ब से आने वाले स्वयंसेवक : यदि कोई स्वयंसेवक विलम्ब से आए तो वह सर्वप्रथम ध्वज के सम्मुख (सम्पत रेखा पीठ की ओर रहेगा।) आकर ध्वज को प्रणाम करे, बाद में उपस्थित सर्वोच्च अधिकारी को प्रणाम कर उनकी अनुमति लेकर अपने गणशिक्षक की अनुमति से गण के कार्यक्रम में सम्मिलित हो। (ध्वजारोपण के समय जो स्वयंसेवक शाखा सम्पत की रचना में खड़े नहीं हो पाए वे विलम्ब से आने वाले माने जायेंगे।)

विलम्ब से आने पर स्वयंसेवक को पहले ध्वजप्रणाम और उसके बाद अधिकारी प्रणाम करना होता है। किसी भी स्थिति में दो बार ध्वजप्रणाम करना उचित नहीं । यदि प्रणाम अधिकारी कार्यक्रम करने/कराने में व्यस्त है तो उनकी ओर मुँह करके प्रणाम कर लेना चाहिये।

ध्वज विलम्ब से आने पर : मुख्य शिक्षक द्वारा सभी स्वयंसेवकों को दक्ष की सूचना (–) देने के पश्चात् ध्वज लगाने वाला स्वयंसेवक ध्वज लगायेगा और एक कदम पीछे आकर प्रणाम करेगा। तत्पश्चात् मुख्यशिक्षक द्वारा सभी स्वयंसेवकों को पूर्ववत् की सूचना (00, 00) दी जायेगी। सभी स्वयंसेवकों को पुनः प्रणाम करने की आवश्यकता नहीं ।

ध्वज लगने के बाद संघचालक का आगमन (मा. संघचालक) : अथवा जिन्हें दक्ष द्वारा सम्मान प्रदान किया जाता है, ऐसे अधिकारी के संघ स्थान की सीमा में प्रवेश करते ही मुख्यशिक्षक सीटी (–) बजायेगा। तत्पश्चात सभी स्वयंसेवक अपने काम बंद कर विस्तार के कारण आवश्यकता होने पर गणशिक्षक की आज्ञा से ध्वजाभिमुख होकर दक्ष करेंगे। मा. संघचालक के साथ आए हुए अन्य अधिकारी तथा स्वयंसेवक भी दक्ष की ही स्थिति में खड़े रहेंगे। मा. संघचालक (अथवा तत्सम उच्च अधिकारी) के ध्वजप्रणाम करने के पश्चात् संघ स्थान पर उपस्थित सर्वोच्च अधिकारी मा. संघचालक को प्रणाम करेंगे। तत्पश्चात सीटी (00, 00) बजने पर शाखा के कार्यक्रम पूर्ववत प्रारम्भ होंगे। उच्चाधिकारी के साथ आए हुए अन्य अधिकारी और स्वयंसेवक ध्वज प्रणाम कर उनको प्रणाम करेंगे।

प्रार्थना के पूर्व जाने वाले स्वयंसेवक : यदि कोई स्वयंसेवक प्रार्थना के पूर्व जाना चाहता है तो वह कार्यवाह की अनुमति लेकर संघस्थान पर उपस्थित सर्वोच्च अधिकारी को प्रणाम करेगा। बाद में ध्वज को प्रणाम कर संघस्थान छोड़ेगा।

दक्ष द्वारा सम्मानित अधिकारी यदि प्रार्थना के पूर्व ही संघस्थान छोड़ रहे हों तो सभी स्वयंसेवकों को ध्वजाभिमुख दक्ष की स्थिति में खड़े कराने के लिये मुख्यशिक्षक सीटी (- – ) बजावेगा। जाते समय अधिकारी पहले ध्वज प्रणाम करेंगे। निकटतम निम्न अधिकारी उनके बाँयी ओर रहते हुए संघस्थान की सीमा तक उनके साथ जायेगा और वहाँ पर उनको प्रणाम करेंगे। इसके पश्चात् उच्चाधिकारी संघस्थान की सीमा छोड़ेंगे। उच्चाधिकारी के संघस्थान छोड़ चुकने के बाद मुख्यशिक्षक सीटी (00, 00) बजायेगा और तब शाखा के

कार्यक्रम पूर्ववत चालू होंगे। अन्य श्रेणी के अधिकारी उनको प्रणाम करेंगे। तत्पश्चात् जाने वाले अधिकारी ध्वज को प्रणाम कर संघस्थान छोड़ेंगे।

शाखा विसर्जन : प्रार्थना के हेतु सम्पत कराने केलिये मुख्य शिक्षक सीटी (- 000) बजायेगा। सब अग्रेसर (अभ्यागत सहित) अपने नियोजित स्थान पर पहुँच कर क्रमानुसार दक्ष में खड़े रहेंगे। मुख्यशिक्षक इनका अंतर ठीक कराकर और (

  1. अग्रेसर सम्यक् आज्ञा देकर उनका सम्यक् देखकर
  2. अग्रेसर आरम् देगा। दूसरी सीटी (- 100) बजते ही अग्रेसर दक्ष करेंगे व गणशिक्षक अपने गणों को रचना के पास लाकर स्वस्थान की आज्ञा देंगे। रचना के पास लाकर ‘स्वस्थान’ देने के लिये गण को ‘स्तभ’ देना अनिवार्य नहीं है। तब सब स्वयंसेवक गटशः अथवा गणशः सम्पत् होकर सम्यक् देखकर क्रमशः स्वयं आरम् करेंगे। तत्पश्चात् मुख्यशिक्षक सबको
  3. संघ दक्ष
  4. संघ सम्यक्
  5. अग्रेसर अर्धवृत्
  6. संख्या
  7. आरम् इस क्रम से आज्ञा देगा। प्रार्थना कहलाने वाला स्वयंसेवक ही संख्या गणक का कार्य करेगा। प्रार्थना के लिये सम्पत के समय ही वह दक्षिणतम अग्रेसर के दाहिनी ओर प्रार्थना के लिये खड़ा होगा। उस समय इस स्वयंसेवक के पास दंड नहीं होगा। यदि सूचनाएं देनी हों तो वे संख्या लिये जाने के उपरान्त प्रार्थना के पूर्व आरम् स्वस्थ देकर स्वस्थ की स्थिति में ही दी जानी चाहिये। उपस्थित प्रमुख अधिकारी (यदि वह दक्ष द्वारा सम्मानित अधिकारी हों तो सब स्वयंसेवकों को दक्ष कराकर) को संख्या (गणक द्वारा प्राप्त संख्या में स्वयं की, अधिकारी की तथा सम्पत् रचना के बाहर के और छुट्टी लेकर गए हुए स्वयंसेवकों की संख्या जोड़कर बताकर प्रार्थना के लिये उनकी अनुमति लेकर पश्चात् मुख्यशिक्षक (आरम् देकर) अपने स्थान पर आवेगा व तदुपरान्त
  8. संघ दक्ष देकर सीटी (0) बजाकर प्रार्थना करावेगा। प्रार्थना के बाद,
  9. ध्वजप्रणाम होगा, पश्चात् प्रार्थना कहने वाला स्वयंसेवक निकटतम मार्ग से जाकर ध्वजमंडल के बाहर ध्वज के सम्मुख खड़े होकर ध्वज को प्रणाम कर ध्वजमंडल के बाहर ध्वज के सम्मुख खड़े होकर ध्वज को प्रणाम कर ध्वजमंडल के अंदर जाकर ध्वजदंड बैठक से निकाल कर अपनी बाँयी बगल के आधार पर तिरछा रखकर स्थिर रखते हुए दाहिने हाथ से ध्वज निकालेगा और उसे पूर्ण तह कर, ध्वजदंड रखकर, बाँए हाथ की मुट्ठी में ध्वज लेकर, मुख्य शिक्षक के बाजू में पहुँचकर उसके दाहिनी ओर अर्धवृत्त कर खड़ा होगा। पश्चात्
  10. संघविकिर’ की आज्ञा दी जावेगी। विकिर की आज्ञा होने पर सब स्वयंसेवक दाहिनी ओर घूम कर ही प्रणाम करेंगे। तथा 4 अंक मन में गिनकर ही जगह छोड़ेंगे। परन्तु सर्वोच्च अधिकारी तथा प्रार्थना कहलाने वाला स्वयंसेवक और मुख्यशिक्षक उसी स्थिति में सब के साथ प्रणाम कर विकिर करेंगे। शाखा का दैनिक कार्य इसी प्रकार हो यह ध्यान में रखना चाहिये। विशेष कार्यक्रम के अवसर पर स्थान के अनुरूप प्रसंगोचित व्यवस्था करनी चाहिये। संघ शिक्षा वर्गों, शिविरों की सम्पत् रचना में यदि मा. अधिकारी तथा मुख्य शिक्षक स्वयंसेवकाभिमुख खड़े हों तो उस समय भी मा. अधिकार को संख्या बताते समय संख्या बताने के पश्चात् मुख्य शिक्षक एक कदम पीछे हटकर (बाजू में नहीं) आरम् देकर अपने स्थान पर जावेगा।

सूचनाएँ

  1. 1. प. पू. सरसंघचालक एवं मा. सरकार्यवाह को दक्ष द्वारा सम्मानित किया जाता है। समस्त संघचालकों को भी उनके अपने कार्यक्षेत्र में दक्ष द्वारा सम्मानित किया जाता है।
  2. प्रणाम करने की दृष्टि से निम्नलिखित श्रेणी है-
    • (अ) प.पू. सरसंघचालक
    • (आ) मा. सरकार्यवाह
    • (इ) मा. क्षेत्र प्रान्त-विभाग-जिला- तहसील तथा स्थानीय संघचालक
    • (ई) सह सरकार्यवाह, क्षेत्र कार्यवाह तथा प्रांत कार्यवाह से लेकर यथोक्त क्रम से स्थानीय शाखा कार्यवाह तक ।
  3. प्रणाम करते समय तीन क्रमों में ही करना चाहिये। ध्वज प्रणाम, अधिकारी प्रणाम, विकिर पद्धति के अंतर्गत किये जाने वाले प्रणाम, सरसंघचालक प्रणाम, आद्य सरसंघचालक प्रणाम तथा स्वागत (अध्यक्षीय) प्रणाम की पद्धति में कोई अंतर नहीं है। दैनिक शाखा में ध्वज स्तंभ सामान्यतः 2.5 मीटर ऊँचा हो, बैठक को केन्द्र मानकर 90 से.मी. त्रिज्या का मंडल अथवा मंडलांश बनाना चाहिये उसका सीमांकन करते हुए ध्वजस्थान सादे ही ढंग से क्यों न हो स्वच्छ और सुशोभित रखना चाहिये। जिन शाखाओं में ध्वज नहीं लगाया जाता वहाँ के स्वयंसेवकों को ध्वजप्रणाम आदि बातों का संस्कार एवं अभ्यास कराने के लिये नियोजित स्थान पर ध्वज है ऐसी मानकर ध्वजप्रणाम आदि का व्यवहार हो। वह स्थान उपर्युक्त प्रकार से सीमांकित और स्वच्छ हो। शाखा में ध्वजारोहण हो जाने के पश्चात किसी विशेष कारण से ध्वज को स्थानांतरित करना हो तो सब स्वयंसेवकों को दक्ष देकर ही वैसा करना चाहिये।
  4. बौद्धिक वर्ग या उस प्रकार के किसी अन्य कार्यक्रम के चालू रहते समय ध्वज प्रणाम के बाद आने वाले स्वयंसेवकों को इस बात की सावधानी रखनी चाहिये कि अपने आगमन से अन्य स्वयंसेवकों का ध्यान विचलित न करते हुए पीछे की ओर जाकर (जहाँ बैठना हो उस स्थान पर) ध्वज तथा अधिकारी को प्रणाम कर बैठ जाना चाहिये।
  5. आवश्यक सूचनाएँ आदि देने का कार्य प्रार्थना के पूर्व ही कर लेने का नियम होने के कारण प्रार्थना के पश्चात् ध्वजप्रणाम होने पर विकिर यह आज्ञा शाखा विसर्जन की अंतिम आज्ञा समझी जानी चाहिये। विशेष प्रसंगों पर किसी खास प्रयोजन से उसी रचना में स्वयंसेवकों को रोकना आवश्यक हो तो विकिर की आज्ञा के अनुसार स्वयंसेवकों द्वारा दक्षिणावृत्त और प्रणाम करने पर वामवृत्त की आज्ञा दें।
  6. खतरे की चेतावनी की सीटी (— ..) बजते ही शिक्षक अपना-अपना गण तुरन्त सम्पत् कर मुख्य शिक्षक के संकेतानुसार कार्य करेंगे।
  7. देश के विभिन्न केन्द्रों में चलने वाले संघ शिक्षा वर्ग बहुत बार किसी एक प्रांत तक या अंचलविशेष तक सीमित दिखाई देते हुए भी वास्तविकता में एक विशेष अखिल भारतीय स्वरूप का केन्द्रित कार्यक्रम है। संघ शिक्षा वर्गों (द्वितीय तथा तृतीय वर्ष) में प्रणाम की दृष्टि से निम्न श्रेणी होगी।
    • प.पू. सरसंघचालक
    • मा. सरकार्यवाह
    • मा. सर्वाधिकारी
    • मा. सह सरकार्यवाह
    • मा. वर्ग कार्यवाह प. पू. सरसंघचालक, मा. सरकार्यवाह तथा मा. सर्वाधिकारी को दक्ष द्वारा सम्मानित • किया जाता है। अब प्रथम वर्ष का वर्ग प्रान्तीय विषय होने के कारण उसमें नियुक्त किये जाने वाले वरिष्ठतम अधिकारी को वर्गाधिकारी कहा जायेगा और मा. प्रान्त संघचालक जी के प्रतिनिधि के नाते वे भी दक्ष द्वारा सम्मानित रहेंगे। प्रथम वर्ष में प्रणाम क्रम होगा। प.पू. सरसंघचालक, मा. सरकार्यवाह मा. क्षेत्र संघचालक, मा. प्रान्त संघचालक, मा. वर्गाधिकारी, मा. सह-सरकार्यवाह, मा. क्षेत्र कार्यवाह, वर्ग कार्यवाह, प्रान्त कार्यवाह ।
  8. वर्ष प्रतिपदा प.पू. आद्य सरसंघचालक जी का जन्मदिन भी है। अतः इस दिन उन्हें प्रणाम दिया जायेगा। सर्वोच्च अधिकारी प.पू. आद्य सरसंघचाक जी की प्रतिमा को माला चढ़ाकर प्रणाम करेंगे। तत्पश्चात् मुख्यशिक्षक आद्य सरसंघचालक प्रणाम 1-2-3 यह आज्ञा देकर प्रणाम करावेगा। ध्वजारोपण, ध्वज प्रणाम आदि कार्यक्रम इसके पश्चात् होंगे।

शाखा लगाने की आज्ञा

शाखा लगाने की कुल आज्ञा 18 है जो निम्न प्रकार है मुख्य शिक्षक द्वारा सीटी (-0-0) बजाते ही सभी स्वयंसेवक आपस की बातचीत बन्द कर संघ स्थान के पीछे की ओर ध्वजाभिमुख होकर आरम्में खड़े रहेगें।

  1. संघ दक्ष
  2. आरम्
  3. अग्रेसर
  4. अग्रेसर सम्यक्
  5. आरम्
  6. संघ संपत्
  7. संघ दक्ष
  8. संघ सम्यक्
  9. अग्रेसर अर्धवृत
  10. संघ आरम्
  11. संघ दक्ष (ध्वज लगेगा )
  12. ध्वज प्रणाम 1,2,3,
  13. संख्या
  14. आरम्
  15. संघ दक्ष
  16. आरम्
  17. संघ दक्ष
  18. स्वस्थान (गणशिक्षक गण को ले जायेगे)

शाखा विकिर करने की कुल आज्ञा 12 होती है जो निम्नप्रकार है

(क) सीटी का संकेत -000(अग्रेसर )(अग्रेसर ध्वज के सामने दक्ष में सम्पत् करेंगे)

  1. अग्रेसर सम्यक्
  2. आरम्

(ख) सीटी -00 (संघ सम्पत्)

  1. संघ दक्ष
  2. संघ सम्यक्
  3. अग्रेसर अर्धवृत
  4. संख्या
  5. आरम्
  6. संघ दक्ष
  7. आरम्
  8. संघ दक्ष

(ग) सीटी0 (प्रार्थना आरम्भ)

  1. ध्वज प्रणाम 1, 2, 3 ध्वज उतरेगा।
  2. संघ विकिर

1 thought on “Rashtriya Swayamsevak Sangh Ki Sahka राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संघ की शाखा। संघ की शाखा क्यों आवश्यक है।

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