जाहिल मेरे बाने – भवानी प्रसाद मिश्र
मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पाँवों चलता हूँ मैं असभ्य हूँ क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँ मैं...
मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पाँवों चलता हूँ मैं असभ्य हूँ क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँ मैं...
जो काम किया‚ वह काम नहीं आएगा इतिहास हमारा नाम न दोहराएगा जब से सपनों को बेच खरीदी सुविधा तब...
जीवन में एक सितारा था माना यह बेहद प्यारा था यह डूब गया तो डूब गया अंबर के आनन को...
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये, कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये। यहाँ दरख़्तों के...
झुक रही है भूमि बायीं ओर‚ फिर भी कौन जाने‚ नियति की आँखें बचाकर‚ आज धारा दाहिने बह जाए! जाने...
मन मेरा क्यों अनमन कैसा यह परिवर्तन क्यों प्रभु क्यों? डोर में, पतंगों में प्रकृति रूप रंगों में कथा में,...
क्योंकि अब हमें पता है कितने भाग्यशाली हैं वे लोग जो आंखें मूंद कर हाथ जोड़ कर सुनते हैं कथा...
जिंदगी यूँ भी जली‚ यूँ भी जली मीलों तक चाँदनी चार कदम‚ धूप चली मीलों तक। प्यार का गाँव अजब...
परशुराम की प्रतीक्षा (शक्ति और कर्तव्य) वीरता जहां पर नहीं‚ पुण्य का क्षय है‚ वीरता जहां पर नहीं‚ स्वार्थ की...
कौन सा पथ है? मार्ग में आकुल–अधीरातुर बटोही यों पुकारा कौन सा पथ है? ‘महाजन जिस ओर जाएं’ – शास्त्र...
मन को वश में करो फिर चाहे जो करो। कर्ता तो और है रहता हर ठौर है वह सबके साथ...
प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी बाँध देती है तुम्हारा मन, हमारा मन, फिर किसी अनजान आशीर्वाद में डूबन मिलती मुझे...