भगवान ने बताया केवल मंदिरों में नहीं, यहां भी मैं हूं
अहं क्रतुरहं यज्ञ: स्वधाहमहमौषधम् | मन्त्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम् || गीता 9/16|| अर्थ: कर्मकाण्ड मैं हूं, यज्ञ मैं हूं, स्वधा मैं हूं,...
अहं क्रतुरहं यज्ञ: स्वधाहमहमौषधम् | मन्त्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम् || गीता 9/16|| अर्थ: कर्मकाण्ड मैं हूं, यज्ञ मैं हूं, स्वधा मैं हूं,...
ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते | एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् || गीता 9/15|| अर्थ : अन्य योगी ज्ञानयज्ञ द्वारा मुझे एकी...
सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढव्रता:। नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते।। गीता 9/14।। अर्थ: दृढ़ निश्चयवाले भक्त निरंतर मेरा कीर्तन करते...
मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचरम् | हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते || गीता 9/10|| अर्थ: हे अर्जुन ! मेरी अध्यक्षता में प्रकृति चराचर...
प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुन: पुन:| भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्|| गीता 9/8|| अर्थ: अपनी प्रकृति को वश में करके जो प्रकृति के...
सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्। कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम् गीता।।9/7।। अर्थ: हे कौन्तेय! सब भूत कल्पों के अंत में मेरी...
यथाकाशस्थितो नित्यं वायु: सर्वत्रगो महान् | तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय || गीता 9/6|| अर्थ: जैसे सर्वत्र विचरण करने वाला महान्...
मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना। मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थित:।। गीता 9/4।। अर्थ: मुझे अव्यक्त से यह संपूर्ण जगत व्याप्त है,...
अश्रद्दधाना: पुरुषा धर्मस्यास्य परन्तप | अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि || गीता 9/3|| अर्थ: हे परंतप! जो पुरुष इस धर्म (ज्ञान)...
राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् | प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् || गीता 9/2|| अर्थ: यह विज्ञान सहित ज्ञान सब विद्याओं का राजा,...
इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे| ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्|| गीता 9/1 अर्थ: श्री भगवान बोले- तुझ दोषरहित के लिए इस...
नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन | तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन || गीता 8/27|| अर्थ: हे पार्थ! इन मार्गों का...