जानें कैसे मिलता है स्वर्ग और किस तरह के भोगते हैं दिव्य सुख
त्रैविद्या मां सोमपा: पूतपापा यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते। ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक मश्र्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्।।गीता 9/20|| अर्थ: तीनों वेदों के ज्ञाता, सोमरस...
त्रैविद्या मां सोमपा: पूतपापा यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते। ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक मश्र्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्।।गीता 9/20|| अर्थ: तीनों वेदों के ज्ञाता, सोमरस...
तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णम्युत्सृजामि च | अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन || गीता 9/19|| अर्थ: मैं ही सूर्य रूप से तपता हूं,...
गतिर्भर्ता प्रभु: साक्षी निवास: शरणं सुहृत्| प्रभव: प्रलय: स्थानं निधानं बीजमव्ययम्|| गीता 9/18|| अर्थ: सबकी परम गति, भरण-पोषण करने वाला,...
पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामह:| वेद्यं पवित्रमोङ्कार ऋक्साम यजुरेव च|| गीता 9/17|| अर्थ: मैं इस जगत का पिता, माता, पितामह...
अहं क्रतुरहं यज्ञ: स्वधाहमहमौषधम् | मन्त्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम् || गीता 9/16|| अर्थ: कर्मकाण्ड मैं हूं, यज्ञ मैं हूं, स्वधा मैं हूं,...
ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते | एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् || गीता 9/15|| अर्थ : अन्य योगी ज्ञानयज्ञ द्वारा मुझे एकी...
सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढव्रता:। नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते।। गीता 9/14।। अर्थ: दृढ़ निश्चयवाले भक्त निरंतर मेरा कीर्तन करते...
मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचरम् | हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते || गीता 9/10|| अर्थ: हे अर्जुन ! मेरी अध्यक्षता में प्रकृति चराचर...
प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुन: पुन:| भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्|| गीता 9/8|| अर्थ: अपनी प्रकृति को वश में करके जो प्रकृति के...
सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्। कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम् गीता।।9/7।। अर्थ: हे कौन्तेय! सब भूत कल्पों के अंत में मेरी...
यथाकाशस्थितो नित्यं वायु: सर्वत्रगो महान् | तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय || गीता 9/6|| अर्थ: जैसे सर्वत्र विचरण करने वाला महान्...
मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना। मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थित:।। गीता 9/4।। अर्थ: मुझे अव्यक्त से यह संपूर्ण जगत व्याप्त है,...